एक बार ब्रह्मांड के नवग्रहों में आपस में विवाद हो गया। वे सभी तय करना चाहते थे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है? इस विवाद का हल निकालने वे सभी देवराज इंद्र के पास पहुंचे। इंद्र ने विवाद से बचने के लिए नवग्रहों से कहा कि धरती पर उज्जैन में विक्रमादित्य नाम का राजा है, जो सदा न्याय करता है। वही आपके विवाद का निर्णय कर सकता है। इंद्र की बात मान नवग्रह राजा विक्रमादित्य के पास अपना मामला लेकर पहुंचे। राजा जानते थे कि वे जिसे छोटा बताएंगे, वही कुपित हो जाएगा, पर वे न्याय की राह नहीं छोड़ना चाहते थे।
राजा ने नव धातुओं के नौ सिंहासन बनाए और हर ग्रह को उनके अनुरूप क्रमशः स्थान ग्रहण करने को कहा। इस तरह लोहे का सिंहासन सबसे बाद में था, जो शनिदेव का था। इस तरह शनिदेव को सभी ग्रहों में अंतिम स्थान मिला। इससे शनिदेव राजा पर कुपित हो गए और अपना समय आने पर विक्रमादित्य को दुख देने की चेतावनी देकर चले गए।
राजा विक्रमादित्य की शनि की साढ़े साती
समय के साथ राजा विक्रमादित्य की कुंडली में शनि की साढ़े साती आई। इसी समय शनिदेव घोड़े के सौदागर बन कर राजा के पास आए। राजा विक्रमादित्य एक घोड़ा पसंद कर जैसे ही उसकी सवारी करने लगे, वह राजा को लेकर जंगल में भाग गया और गायब हो गया। जंगल में भटककर राजा किसी नए देश जा पहुंचे। वहां एक शहर में एक सेठ से बात करने लगे। सेठ के यहां उनके पहुंचते ही खूब सामान बिका, तो वह प्रसन्न होकर राजा को भोजन कराने घर ले गया। भोजन करते हुए राजा ने देखा कि एक खूंटी पर हार लटका है और वह खूंटी ही उसे निगल रही है। राजा के भोजन करने पर सेठ ने खूंटी पर हार ना पाया, तो उसे अपने राजा के यहां कैद करवा दिया। राजा ने चोरी के आरोप में विक्रमादित्य के हाथ कटवा दिए।
इसके बाद विकलांग राजा को एक तेली अपने घर ले गया और कोल्हू के बैलों को हांकने का काम दे दिया। इस तरह साढ़े सात साल बीत गए और एक रात शनि की महादशा समाप्त होते ही विक्रमादित्य ने ऐसा राग छेड़ा कि राज्य की राजकुमारी ने उनसे विवाह का प्रण ले लिया। लाख समझाने पर भी राजकुमारी ना मानी तो राजा ने विकलांग विक्रमादित्य से अपनी राजकुमारी का विवाह कर दिया। रात्रि में शनिदेव ने विक्रमादित्य के सपने में आकर कहा कि तुमने मुझे सबसे छोटा ठहराया था ना। अब देखो मेरा ताप और बताओ कि किस ग्रह में मेरे जितना प्रकोप है?
राजा ने शनिदेव से माफी मांगी जिसके बाद शनिदेव ने उन्हें माफी दी। सुबह सब तरफ राजा विक्रमादित्य और शनिदेव की कथा की चर्चा होने लगी। विक्रमादित्य की जानकारी मिलते ही वह व्यापारी भी माफी मांगने आया और उन्हें फिर भोजन का निमंत्रण दे गया। राजा जब उसके यहां भोजन कर रहे थे तो उसी खूंटी ने सबके सामने हार वापस उगल दिया। इस तरह सभी के सामने स्पष्ट हो गया कि राजा ने चोरी नहीं की थी। व्यापारी ने राजा से कई बार माफी मांगी और अपनी कन्या का विवाह उनके साथ कर दिया। राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों रानियों और ढेर सारे उपहारों के साथ उज्जैन वापस आए और राजकार्य संभाल लिया।