के लिये जाता है तो वापस आते ही उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहता। अपने ही हमशक्ल को गाड़ी में पत्नी की बगल में बैठे देखता है। उसकी पत्नी भी एक शक्ल के दो-दो व्यक्तियों को देखकर परेशानी में पड़ गई कि उसका पति कौनसा है। जैसे ही साहूकार ने पत्नी के पास बैठे व्यक्ति से पूछा कि वह कौन है तो पलट कर जवाब दिया कि भैया मैं तो फलां नगर का साहूकार हूं और फलां नगर से अपनी पत्नी को लेकर आ रहा हूं तुम बताओ तुम कौन हो जो मेरा वेश धर कर यहां आ कबाब में हड्डी बनने के लिये आ धमके हो। ऐसे बहस बाजी करते-करते दोनों में झगड़ा बढ़ गया। झगड़े को देखते हुए राज्य के सिपाही वहां आ पंहुचे और साहूकार को पकड़ लिया। अब सिपाही भी चक्कर में कि दोनों की शक्ल तो एक समान है। उन्होंने साहूकार की पत्नी से पूछा कि उसका पति इनमें से कौनसा है वह बेचारी क्या जवाब देती। तब साहूकार ने हाथ जोड़ लिये और भगवान से विनती करने लगा यह आपकी क्या माया है। तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख याद कर कुछ देर पहले ही तूने अपने सास-ससुर की आज्ञा न मानकर भगवान बुध का अपमान किया और बुधवार के दिन तू अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा जबकि तुझे इस दिन गमन नहीं करना चाहिये था। यह स्वयं बुध देव हैं जो तुम्हें सबक सिखाने के लिये तुम्हारे वेश में हैं। तब साहूकार ने कान पकड़ कर माफी मांगी और आगे से कभी भी ऐसा न करने का वचन किया और बुधवार को नियमपूर्वक व्रत पालन करने का संकल्प किया। तब जाकर साहूकार के रूप में प्रकट हुए बुध देवता अंतर्ध्यान हुए और साहूकार अपनी पत्नी को लेकर घर जा सका। इस घटना के पश्चात साहूकार और उसकी पत्नी दोनों नियमित रूप से बुधवार का व्रत पालन करने लगे।
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस कथा को कहता है या सुनता है या फिर पढ़ता है उसे बुधवार के दिन यात्रा करने से किसी तरह का दोष नहीं लगता और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। बुध ग्रह की शांति और सर्व-सुख के इच्छुक स्त्री-पुरुष बुधवार के इस व्रत कर सकते हैं। ज्ञान, बुद्धि, कार्य, व्यापार आदि में उन्नति के लिये भी बुधवार का व्रत बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है। बुधवार के दिन बुद्ध देवता के साथ-साथ भगवान गणेश जी की पूजा का विधान भी है।
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