महाशिवरात्रि
अलग-अलग ग्रंथों में महाशिवरात्रि की अलग-अलग मान्यता मानी गई है. कहा जाता है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था. भारतीय ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे.
इस मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस दिन अपने विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग में प्रकट हुए थे. कुछ हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से ही सृष्टि का निर्माण हुआ था. ऐसी मान्यता हैं की इसी दिन भगवान शिव करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्व वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे.
भारतीय मान्यता के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य और चंद्र अधिक नजदीक रहते हैं. इस दिन को शीतल चन्द्रमा और रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन माना जाता हैं. इसलिए इस चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं
विभिन्न स्थानों पर महाशिवरात्रि को लेकर विभिन्न मान्यताएं प्रचलित है और इस वजह से महाशिवरात्रि को कई तरह से मनाया जाता हैं. शिवभक्त इस दिन पवित्र नदियो जैसे की गंगा व यमुना में सूर्योदय के समय स्नान करते हैं. स्नान के बाद साफ व पवित्र वस्त्र पहने जाते हैं. इसके बाद घरों व मंदिरों में विभिन्न मंत्र व जापों के द्वारा भगवान शिव की पूजा की जाती है. शिवलिंग को दूध व जल से स्नान कराया जाता हैं.
हर शिवरात्रि की सम्पूर्ण पूजाविधि की बात करे तो सबसे पहले शिवलिंग को पवित्र जल या दूध से स्नान कराया जाता हैं. स्नान के बाद शिवलिंग पर सिंदूर लगाया जाता हैं. इसके बाद शिवलिंग पर फ़ल चढ़ाए जाते हैं. इसके बाद अन्न व धूप को अर्पित लगाया जाता हैं. कुछ लोग शिवलिंग पर धन भी चढाते हैं।
इसके बाद आध्यात्मिक दृष्टि से शिवलिंग के आगे ज्ञान के प्रतीक के रूप में एक दीपक जलाया जाता हैं. इसके बाद पान शिवलिंग पर पान के पत्ते भेंट लिए जाते हैं जिनके बारे में कई विशेष मान्यताये हैं.
महाशिवरात्रि को जाग्रति की रात माना जाता हैं. महाशिवरात्रि को रात में शिव की महान पूजा व आरती की जाती हैं. इस दिन रात को शिव व पार्वती की काल्पनिक रूप से शादी की जाती हैं और बारात निकली जाती हैं. कुछ सम्प्रदायों में इस रात नाचने, गाने व खुशिया मनाने की मान्यता है अतः वह मेलो व जागरण का आयोजन करते हैं।
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