पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय की बात है जब एक धनी व्यक्ति मधुसूदन अपनी पत्नी को विदा करवाने के लिए अपनी ससुराल गया. वहां वह कुछ दिन रहा और फिर अपने सास-ससुर से विदा करने को कहा. किन्तु वहां सब बोले कि आज बुद्धवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करना चाहिए. वह व्यक्ति नहीं माना और हठधर्मी करके बुद्धवार के दिन ही पत्नी को विदा कराकर अपने नगर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसकी पत्नी को प्यास लगी, तो वह व्यक्ति लोटा लेकर रथ से उतरकर पानी लेने को चल दिया. जैसे ही वह पानी लेकर अपनी पत्नी के पास लौटा तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि उसके ही जैसी सूरत और वेश-भूषा वाला एक व्यक्ति उसकी पत्नी के साथ रथ में बैठा हुआ है.
वह क्रोधित हुआ और उसने क्रोध से कहा, ‘तू कौन है जो मेरी पत्नी के निकट बैठा हुआ है?’ दूसरा व्यक्ति बोला, ‘यह मेरी पत्नी है. इसे मैं अभी-अभी ससुराल से विदा कराकर ले जा रहा हूं.’ वे दोनों व्यक्ति परस्पर झगड़ने लगे.
तभी राज्य के सिपाही आकर लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ने लगे. स्त्री से पूछा, तुम्हारा असली पति कौन है? तब पत्नी शांत रही, क्योंकि दोनों एक जैसे थे. वह किसे अपना असली पति बताती. वह व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला, ‘हे परमेश्वर! यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है. तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख आज बुद्धवार के दिन तुझे गमन नहीं करना चाहिए था. पर तूने किसी की बात नहीं मानी और चल पड़ा.
यह सब लीला बुद्धदेव भगवान की है. तब उस व्यक्ति ने बुद्धदेव जी से प्रार्थना की. उसने अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी. तब बुद्धदेव जी अन्तर्ध्यान हो गए. इसके बाद वह व्यक्ति अपनी स्त्री को लेकर घर आया. इसके बाद से ही वे दोनों पति-पत्नी बुद्धवार का व्रत हर सप्ताह नियमपूर्वक करने लगे. मान्यता है कि जो व्यक्ति इस कथा को सुनता है और औरों को भी सुनाता है, उसको बुद्धवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है और उसको सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं