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सकट चौथ व्रत कथा: भक्ति और पति-पत्नी के प्रेम की कहानी

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Written by Mayavi Guruji

 

 

सकट चौथ व्रत हिन्दू समाज में पति-पत्नी के प्रेम और संबंधों की महत्वपूर्ण बातचीत को महसूस कराता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में प्रचलित है, जहां स्त्रीयाँ अपने पति की दीर्घायु और सुख-शांति के लिए इस व्रत का आचरण करती हैं।

कथा:

एक समय की बात है…

एक सुंदर गाँव में एक सुखी और समृद्धि शील ब्राह्मण परिवार रहता था। इस परिवार की सुन्दरी बेटी का नाम अमृता था। अमृता अपने पति सुरेश के साथ एक खुशहाल जीवन बिताती थी, और उनके बीच एक-दूसरे के प्रति विशेष प्रेम था।

गाँव में एक दिन, एक वृष्णि व्रत के दिन अमृता ने अपने सहेलियों से व्रत की कथा सुनी और उन्हें बहुत सुंदर और धार्मिक रूप से देखकर उन्हें भी इस व्रत का आचरण करने का इच्छा हुई। अमृता ने व्रत की कथा के द्वारा अपने सहेलियों को बताया और सभी ने आचरण करने का निर्णय लिया।

 

 

व्रत की शुरुआत:

व्रत के दिन सुबह, अमृता ने उठकर नींद से उत्तेजना किया और व्रत की तैयारियाँ शुरू की। उसने धूप, दीप, फल, फूल, चन्दन, कुमकुम, अक्षता, और नैवेद्य सहित सभी पूजा सामग्री इकट्ठी की। इसके बाद, वह अपने सहेलियों के साथ एकत्र होकर भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा करने निकली।

व्रत कथा का पाठ:

व्रत की पूजा के बाद, अमृता ने भगवान शिव की कथा का पाठ किया और अपनी भक्ति और श्रद्धा से भगवान की कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।

नींद से जागरूक:

पूजा के बाद, अमृता ने अपने पति सुरेश को भी उठाया और उन्हें भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा में शामिल होने के लिए कहा। सुरेश ने भी भक्ति भाव से पूजा में शामिल होने का निर्णय लिया और उन्होंने भगवान के चरणों में अपनी प्रार्थना समर्पित की।

भगवान का आशीर्वाद:

पति-पत्नी ने साथ मिलकर व्रत की पूजा का आचरण किया और संतुष्ट होकर व्रत कथा का पाठ किया। भगवान की कृपा से उनका जीवन धन, सुख, और समृद्धि से भरा हुआ था। वे एक-दूसरे के साथ आत्मनिर्भरता और साथीत्व के साथ एक सफल और संतुष्ट जीवन जी रहे थे।

सकट चौथ व्रत ने उन्हें पति-पत्नी के बीच सजीव प्रेम, समर्थन, और आपसी समर्पण की महत्वपूर्णता की सिख दी। इस व्रत से संतान सुख और पुत्र प्राप्ति की कामना की जाती है और भक्ति, श्रद्धा, और प्रेम के साथ यह पर्व मनाया जाता है।

 

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